खास खबर- जिले के तीनो टॉपर बच्चों की एक ऐसी समानता- बाहर से नहीं ली कोई कोचिंग, पैरेंट्स ही बने टीचर, किसी को दीदी, किसी को पापा, किसी को नानी ने पढ़ाया

ऐसा माहौल हर घर में हो तो बच्चे नहीं होंगे हताश, निराश, पढ़ाई में बढ़ेगा उनका हौसला, उम्मीदों से भरेंगे नई उड़ान
बालोद। बालोद जिले ने शिक्षा के क्षेत्र में एक बार फिर एक नई ऊंचाई को पाया है। बात चाहे दसवीं की हो या 12वीं की। दसवीं में जहां तीन टॉपर बच्चे टॉप टेन में आए हैं तो 12वीं में रिजल्ट पूरे छत्तीसगढ़ में बालोद का टॉप पर है। तो वही टॉपर बच्चों में खुद के भीतर आगे बढ़ने की जुनून व पैरेंट्स का साथ इतना मिला है कि उन्हें सफलता भी मिलना तय था। उन बच्चों ने पहले से ही ठान रखी थी कि टॉप टेन में आकर ही रहेंगे। उन तीनों टॉपर को बाहर से कोई कोचिंग लेने की भी जरूरत नहीं पड़ी। खास बात यह है कि तीनों बच्चों के पैरेंट्स ही उन्हें होम कोचिंग यानी घर पर ही पढ़ाते थे। किसी की दीदी किसी का पापा तो किसी की नानी उन बच्चों के लिए टीचर की भूमिका निभाते थे। इसी खासियत व हौसला अफजाई से उन बच्चों का विश्वास बढ़ता रहा और यही वजह थी कि बच्चों ने जीत हासिल कर ली। यह खासियत व माहौल हर परिवार के बच्चों व पैरेंट्स के बीच होनी चाहिए ताकि कोई भी बच्चा निराश ना हो और दुगनी उत्साह के साथ पढ़ाई व मेहनत करते रहें और हताशा उनकी जिंदगी में कभी ना आए। जो बच्चे परीक्षा में कम नंबर लाए हैं वे भी निराश ना हो कर नए सिरे से, नए उत्साह से शुरुआत करें,,,, यही संदेश के साथ बच्चों ने दूसरे बच्चों का हौसला बढ़ाया है।

आइए जानते हैं कैसे टॉपर बच्चों के पैरेंट्स उनकी पढ़ाई में निभाते थे एक टीचर की भूमिका
कहानी 1- नानी ने दिए बेहतर पढ़ाई के नुस्खे

भारती यादव


बालोद ब्लॉक के ग्राम टेकापार की रहने वाली भारती यादव ने टॉप टेन में तीसरा रैंक हासिल किया है। भारती को 98.67% अंक मिला है। भारती अपने नानी के साथ टेकापार में बचपन से ही रह रही है। उनके माता-पिता ग्राम चंदखुरी जिला दुर्ग में रहते हैं। भारती यादव के पिता रूम लाल यादव खेती किसानी करते हैं तो मां मंजूषा यादव गृहिणी है। भारती लाटाबोड़ हायर सेकेंडरी स्कूल की छात्रा है। दो बहन व एक भाई में भारती सबसे बड़ी है। छोटी बहन तृप्ति सातवीं कक्षा तो छोटा भाई पीयूष पहली कक्षा में है। भारती यादव ने कहा कि वह टॉप टेन में आएगी इसकी उम्मीद थी यह भी सोच रही थी कि शायद वह सातवें आठवें रैंक पर आएगी लेकिन तीसरे रैंक पर आ जाएगी इसकी उम्मीद नहीं थी। 95 प्रतिशत तो आ ही जाएगी इतना यकीन था पर अपनी मेहनत से भारती ने अपने ही उम्मीदों का रिकॉर्ड तोड़ दिया और 98.67% के साथ तीसरे रैंक पर आ गई। भारती का कहना है कि उम्मीद से बेहतर मैंने मुकाम पाया है अभी तो और भी फासले तय करने हैं। आगे और बड़ी मंजिल है। जिसे मेहनत से हासिल करना है। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय अपने शिक्षकों के अलावा अपनी नानी व माता-पिता को दिया। जिनके मार्गदर्शन में वह पढ़ाई करती रही। उनके पिता एमए व मां बीएससी पढ़ी लिखी है। शिक्षित परिवार होने के कारण एक अच्छा माहौल भी भारती को मिला। बेटी अच्छे से पढ़ाई कर सकें इसलिए माता-पिता ने भी उसे अपनी नानी के पास भेज दिया। नानी के मार्गदर्शन व सेल्फ स्टडी के साथ रोज 8 से 9 घंटे मेहनत करते हुए भारती ने जिले के अलावा पूरे छत्तीसगढ़ में टॉप टेन में जगह बना ली। भारती ने कहा कि उनका सपना इंजीनियर बनने का है।

कहानी 2- मेहनत की मिसाल, दीदी ने पढ़ाया, बहन ने परिवार का मान बढ़ाया

ममता को उनकी दीदी रजनी ने पढ़ाया


टॉप टेन में पांचवे स्थान पर आने वाली दल्ली राजहरा की वार्ड 24 की रहने वाली ममता सिंग मेहनत की एक अनूठी मिसाल है। जिन्होंने अपने पढ़ाई जीवन से ही संघर्ष भरी जिंदगी शुरू कर दी है। मध्यम परिवार की रहने वाली ममता सिंग के पिता 1 साल से बेरोजगार हैं। पहले वे एक डामर प्लांट में सुपरवाइजर का काम करते थे। मां बिंदु गृहणी है। ममता सरस्वती शिशु मंदिर दल्ली राजहरा में पढ़ती है। परिवार की आर्थिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं है लेकिन ममता ने हिम्मत नहीं हारी और 98.33% अंक हासिल कर ही ली। उनकी बड़ी बहन रजनी ने ही उन्हें घर पर कोचिंग दी। बड़ी बहन रजनी बीएससी की पढ़ाई करती है। छोटे बच्चों का भी वह घर पर ही कोचिंग क्लास लगाती है। चार बहन एक भाई में ममता तीसरे नंबर की परिवार की बेटी है। ममता ने कहा कि अंग्रेजी, विज्ञान और गणित विषय जो कठिन होते हैं उन्हें वह 2 से 3 घंटे का समय देकर पढ़ाई करती थी। बाकी जो विषय सरल होते थे उनके लिए वह एक 1 घंटे निकालती थी। इस तरह टाइम मैनेजमेंट करके पढ़ाई कर रही थी। उसने लक्ष्य बना लिया था कि टॉप टेन में जगह जरूर हासिल करेगी। ममता ने कहा कि अब वह दसवीं के बाद 12वीं में टॉप टेन में आने के हिसाब से ही पूरी मेहनत करेगी।

ममता सिंग

बड़ी होकर वह एक आईएएस अफसर बनना चाहती है। सोशल मीडिया के बारे में उन्होंने कहा कि अगर हम उसमें टाइम पास करते हैं तो इसका इस्तेमाल करना बेकार है लेकिन अगर पढ़ाई के लिए जैसे ऑनलाइन पढ़ाई या किसी जरूरी जानकारी के लिए अगर हम मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं तो वह जरूरी है और इसी उद्देश्य के साथ वह जरूरी हो तभी मोबाइल के इस्तेमाल करती थी। दोस्तों से चैटिंग कर समय व्यतीत करना उन्हें जरा भी पसंद नहीं है।

कहानी 3- पशु चिकित्सक पापा बने बेटे के लिए टीचर

रितेश अपने पैरेंट्स के साथ

इसी तरह जिले में टॉप टेन में छठवें रैंक पर अर्जुंदा के एक प्राइवेट स्कूल नेताजी सुभाष चंद्र बोस हायर सेकेंडरी स्कूल से छात्र रितेश सिन्हा ने 98.17% अंक हासिल किया है। रितेश के पिता भोलाराम सिन्हा डूंडेरा पशु अस्पताल में सहायक पशु चिकित्सा अधिकारी हैं। रितेश ने भी कोई कोचिंग नहीं बल्कि सेल्फ स्टडी से मेहनत हासिल की। उनके पिता ही उनके टीचर बनकर उन्हें कठिन विषय को पढ़ाते थे तो मां सीमा बाई भी उन्हें इस काम में मदद करती थी। रितेश का मूल गांव देवगहन है लेकिन पापा की ड्यूटी की वजह से वह परिवार सहित अर्जुंदा में वार्ड 15 बोरगहन मार्ग पर रहते हैं।

रितेश सिन्हा

रितेश दो बहन व एक भाई में सबसे छोटा है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का सपना है। इस लिहाज से वह अब आगे की तैयारी भी कर रहा है।