नवरात्रि के द्वितीय दिन पर माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना आराधना की जाती है बाबा बालक दास ने इस पर प्रकाश डालते हुए बताया

बालोद।नवरात्रि के पावन पर्व पर, ऑनलाइन सत्संग में माता रानी के दिन प्रतिदिन होने वाली पूजा पाठ की परिचर्चा सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे दोपहर 1:00 से 2:00 बजे आयोजित सत्संग में श्री राम बालक दास जी के सानिध्य में और उनके भक्तों के साथ की जाती रही है
ऑनलाइन सत्संग में यशवंत कुमार टंडन ने दोहे यत्र नारी पूज्यंते…… के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की, यह पंक्ति मां भगवती के लिए वर्णित वेद वाक्य के है जिसमें स्पष्ट भाव है कि जहां स्त्री की पूजा होती है जहां स्त्रियों का मान सम्मान किया जाता है वहां पर देवता का वास रहता है आज के संदर्भ में देखा जाए तो प्रथम नारी का अर्थ केवल शरीर रूपी नारी नहीं अपितु स्त्री अर्थात प्रकृति से है जहां पर जल संवर्धन हो वायु प्रदूषण ना हो जहां पृथ्वी का श्रृंगार किया जाए अर्थात वृक्षारोपण किया जाए गाय का संरक्षण हो यह प्रकृति रूपी गुण जहां होते हैं वहां पर देवताओं का वास होता है।

स्त्रियां विभिन्न गुणों से सुसज्जित होती है स्त्री के गुण जैसे शांति सहनशीलता धैर्य प्रेम सहन शक्ति ऐसे दिव्य गुणों में उपलब्ध होते हैं

जिन व्यक्ति में यह गुण होता है वहीं पर देवता रमण करते हैं इस प्रकार प्रकृति रूपी गुणों अर्थात वृक्षारोपण करना जलवायु का संवर्धन करना और नारी गुणों को धारण करने वाले व्यक्ति के यहां देवता रमण करते हैं देवता के आने का अर्थ है आपके हृदय में दिव्य भाव का होना घर में धन संपदा प्रेम व्यवहार शांति सुमति एकता भक्ति भाव का बास होना ही देवता है अच्छे गुणों का आना ही देविय गुण होते हैं।


नवरात्रि के द्वितीय दिन पर माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना आराधना की जाती है उनके नाम का व्रत किया जाता है

इसी पर जिज्ञासा रखते हुए रामफ़ल ने माता रानी के इस रूप को धारण करने के कारणों को पूछा, बाबा जी ने माता के इस रूप का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने 1008 पटरानियां थी तो भी उन्हें ब्रह्मचारी कहा जाता था ब्रह्मचार्य होने का अर्थ यह नहीं कि आपका विवाह ना हुआ हो आप का विवाह हुआ हो तब भी आप विकारों से युक्त है तो आपको ब्रह्मचारी नहीं कहा जा सकता जिसका विवाह भी हो गया हो और वह विकारों से मुक्त हो, विभिन्न अवगुणों को त्याग करना शरीर की लोलुपता का त्याग करना पूर्ण ब्रह्म में मस्त रहना वही ब्रह्मचारी है मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप इन्हीं गुणों का उद्घोषक है माता पार्वती ने इसी रूप में भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी उसी रूप में ब्रह्मचारिणी कहा जाता है और उनका आज के दिन पूजन किया जाता है।


नवरात्रि के पावन दिनों में, बाबा ने माता के विभिन्न स्वरूपों को प्रणाम करते हैं

माता के विभिन्न रूपों के भावों को स्पष्ट करते हुए मां के महत्व को बताया मां के कई रूप है मातृभूमि माता हमें धारण करने वाली धरती माता हमें जन्म देने वाली हमारी माता और हमारी प्रकृति माता, माँ का कोई भी रूप हो वह हमें पूर्ण सुरक्षा एवं लालन-पालन प्रदान करती है और वात्सल्य प्रदान करती है मां जिसने हमें जन्म दिया हमें अपने खून से सींचा और हमें जन्म देने के लिए मृत्यु से भी सामना किया और हमारे लालन-पालन में अपने वात्सल्य की कोई कमी नहीं रखती अपने जीवन को निछावर कर देती है ऐसी महान माता को कोटि-कोटि नमन करते हैं नवरात्र पर्व में भले ही आप मंदिर जाए ना जाए लेकिन अपने कीमती समय में उनके लिए अवश्य समय निकालें वही आपकी माता रानी के लिए सेवा और पूजा अर्चना आराधना होगी
दाताराम साहू ने गुरु विवेक…….. पंक्तियों को स्पष्ट करने की विनती की इन पंक्तियों में, गुरु के गुणों की व्याख्या की गई है गुरु में इतना अधिक ज्ञान होता है कि वह सागर के समान होता है जिसके हाथ में गूलर का फल भी संसार का रूप गूलर का फल है जिससे उसका कोई मोहमाया नहीं वह विश्व का कोई भी असंभव कार्य कर सकने में समर्थ होते हैं उनके पास इतना अधिक ज्ञान होता हैं।