पोला विशेष- आधुनिकता के इस दौर में बच्चे वीडियो गेम और मोबाइल तक ना सिमटे इसलिए यह शिक्षिका उन्हें मिट्टी के खिलौने बना कर रही संस्कृति बचाने को प्रेरित, स्कूल बंद तो कोरोना वारियर की भूमिका भी निभा रही
दीपक यादव,बालोद। आज पोला का पर्व किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। किसानों के साथ उन बच्चों के लिए यह दिन भी यादगार रहता है जो आज के दिन मिट्टी के खिलौनों से खेलते हैं। कोई मिट्टी के बैल दौड़ाता है तो कोई मिट्टी के खिलौने तैयार कर उनके साथ खेलता है। बच्चों में आज के इस मोबाइल, कंप्यूटर और लैपटॉप के दौर में पोला का उत्साह कम नजर आता है ऐसे में पोला की इस संस्कृति को बचाए रखना भी बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और इस महत्वपूर्ण काम को अर्जुन्दा की रहने वाली एक शिक्षिका पुष्पा चौधरी बखूबी कर रही हैं।
वर्तमान में अर्जुन्दा के मिडिल स्कूल में ही वह उच्च वर्ग शिक्षक पद पर पदस्थ हैं और वह लगातार कई सालों से बच्चों को मिट्टी के खिलौने बनाना सिखा रही हैं। खुद भी वह उन खिलौनों को बनाकर बच्चों को उन से जोड़ती है। खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाती हैं। वर्तमान में लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद है लेकिन पुष्पा की कोशिश नहीं रुकी है। वह बच्चों को घर से ही मिट्टी के खिलौने बनाकर उन्हें वीडियो भेज कर फोटो खींच कर बच्चों को प्रेरित कर रही है। इतना ही नहीं वह कोरोना वारियर की भूमिका भी निभा रही है।
1000 से ज्यादा लोगों को बांट चुकी है मास्क
इस कोरोना काल में अब तक 1000 से ज्यादा लोगों को स्वयं सिलाई करके पुष्पा चौधरी जरूरतमंदों को मास्क दे चुकी है और कोरोना से बचने प्रेरित करती है।
बचपन से ही था मिट्टी के खिलौनों से लगाव, शिक्षिका बनी तो इसे एक मुहिम बना बैठी
शिक्षिका पुष्पा चौधरी ने बताया कि बचपन से ही उन्हें मिट्टी के खिलौनों से लगाव था। वह घर पर भी मिट्टी लाकर कुछ ना कुछ बनाती रहती थी। धीरे-धीरे उनकी कलाकारी निखरने लगी। फिर जब वह पढ़ लिखकर खुद शिक्षक बन गई तो उन्होंने सोचा कि क्यों ना बचपन के हुनर को अपने स्कूल के बच्चों में भी बांटा जाए और उन्होंने एक मुहिम छोड़कर जिस स्कूल में भी रहे वहां बच्चों को मिट्टी के जरिए कलाकारी सिखाते रहे। अलग-अलग पर्व पर अवसर के अनुसार मिट्टी के खिलौने व मूर्तियां भी बनाती हैं तो विभिन्न आयोजनों में वह अपने इन कलाकृतियों की प्रदर्शनी भी लगाती है। वर्तमान में गणेश चतुर्थी को देखते हुए शिक्षिका घर पर मूर्ति भी तैयार कर रही हैं।
बीहड़ क्षेत्र की चुनौतीपूर्ण हालातों का सामना कर आगे बढ़ी
पुष्पा चौधरी ने दैनिक बालोद न्यूज़ को बताया वह डौंडी ब्लॉक के बीहड़ क्षेत्र ग्राम कंजेली में 1995 से 1997 तक पदस्थ रही। उस समय वहां सड़क तक नहीं बनी थी। बिजली तक का भी अभाव था। ऐसे हालातों में कई तरह की परेशानी झेलते हुए पगडंडी भरे रास्तों से सफर तय कर वह पढ़ाने के लिए जाती थी। इसके बाद घोटिया स्कूल में भी पदस्थ रही। इसके बाद वे मटिया फिर अब अर्जुन्दा में ही पदस्थ है। पति धर्मेंद्र कुमार चौधरी बिजनेसमैन हैं।
माता-पिता से प्रेरित होकर बेटियां भी दिखा रही ड्राइंग में अपना हुनर
माता पिता से प्रेरित होकर बचपन से ही इनकी दोनों बेटियां भी हुनरमंद हैं। बड़ी बेटी दीपाली चौधरी ड्राइंग में एक्सपर्ट है। उन्हें राज्यपाल पेंटिंग पुरस्कार भी मिल चुका है। कोरोना काल के दौरान जब मजदूर दूरदराज से पैदल लौटते थे तो उन्होंने एक मार्मिक चित्रकारी बनाई थी। जिसे कई लोगों ने सराहा ।
इस पेंटिंग में दीपाली ने गरीब मजदूरों के दर्द को बयां किया था तो एक दृश्य दिखाया था कि किस तरह पैदल लौटते मजदूरों के पांव में छाले पड़ गए हैं तो लोगों से वह अपील भी की थी कि हम कैसे उनकी मदद कर सकते हैं। उनकी छोटी बेटी वैशाली चौधरी भी पढ़ाई में अव्वल है। 80% से ऊपर अंक लाने पर दसवीं कक्षा के दौरान उन्हें सम्मानित भी किया गया था। छोटी बेटी भी ड्राइंग में रुचि रखती है।
उत्कृष्ट शिक्षक का भी मिल चुका है सम्मान
पुष्पा चौधरी नवाचारी शिक्षक हैं, वहीं शिक्षक कला अकादमी छत्तीसगढ़ की सदस्य हैं। गुंडरदेही टीचर एसोसिएशन महिला प्रकोष्ठ की भी सदस्य हैं तो उन्हें 2013 में अर्जुन्दा संकुल क्षेत्र से उत्कृष्ट शिक्षक का सम्मान भी मिल चुका है। लगातार वह अपने नवाचार के जरिए बच्चों को पढ़ाई के प्रति प्रोत्साहित करती है।