सावन मास में भगवान भोले नाथ शिवशंकर का प्रत्येक रूप का दर्शन करना चाहिए कैसे करे दर्शन आओ जाने…
दैनिक बालोद न्यूज।प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत राम बालक दास के द्वारा उनके विभिन्न वाट्सएप ग्रुपो में प्रातः 10:00 बजे से किया गया
सत्संग परिचर्चा में सभी को सावन माह के पावन पवित्रता को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि इस माह में हमें भगवान भोलेनाथ की प्रत्येक स्वरूप का प्रतिदिन दर्शन करना चाहिए उनकी जटाओं से बहने वाली कल कल गंगा उनके गले में लिपटे हुए नाग उनके द्वारा पहनी गई मुंडो की माला जटा धारी शिव का दर्शन हमें प्रतिदिन करना चाहिए।
शिव कथा सुननी चाहिए शिव महापुराण पढ़ना चाहिए उस पुराण में उनके द्वारा किये गये जन कल्याण कार्यों का चिंतन मनन करना चाहिए शिव चालीसा शिव स्त्रोत तांडव आदि का पठन-पाठन भी करना चाहिए, भगवान शिव के ओमकार नवकार, सकार,वकार मंत्रों का जाप करना चाहिए पंचाक्षरी स्त्रोत शिव मानस पूजा और हो सके तो प्रतिदिन काली मिट्टी से बने हुए शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए यह भोलेनाथ का माह है जिसमें आपके द्वारा चढ़ाई गए एक लोटा जल में भी वे प्रसन्न हो जाते हैं।
आज की सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जिज्ञासा रखी की
बाबा जी, शंकर के तीसरे नेत्र धारण का क्या प्रसंग है कृपया विस्तार से बताने की कृपा करेंगे।, बाबा जी ने बताया कि ऐसा नहीं है कि से भगवान भोलेनाथ के ही त्रिनेत्र है हम देखते हैं कि माता चंडिका के भी त्रिनेत्र होता है और शिव गौरी पुत्र भगवान गणेश का भी त्रिनेत्र है कंब रामायण में भगवान हनुमान को भी त्रिनेत्र धारी बताया गया है, तो ज्ञात होता है कि त्रिनेत्र वह शक्ति है जो देव में ही नहीं हर मनुष्य में भी उपस्थित होती है बस उसे जानने और पहचानने की आवश्यकता हमें होती हैं, यह तीसरी शक्ति का घोतक है जैसे कभी कोई खतरा या भय होता है तो हमें छठी इंद्री से आभास भी हो जाता है परंतु वह इंद्री कहां स्थापित है यह हमें ज्ञात नहीं
वैसे ही यह दो नेत्र की शक्ति जब कोई अद्वितीय अकल्पिक देखने में असमर्थ होती है तब हमारे भीतर तीसरा नेत्र उपस्थित है उसके द्वारा वह सब ज्ञात करने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि हम भी तो अमृत पुत्र हैं शिवांश है जब हम स्वयं परमात्मा का अंश है।
वास्तव में शिव भगवान के ही तीन नेत्र के समान हमारे भी त्रिनेत्र है आवश्यकता केवल उसे जानने व खोलने की है
इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग सुमधुर भजनों के साथ संपन्न हुआ।