माता लक्ष्मी को चंचला क्यो कहा जाता है आओ जाने- बाबा जी

दैनिक बालोद न्यूज।संतराम बालक दास के द्वारा, प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में प्रातः 10:00 बजे किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
आज की परिचर्चा में पाठक परदेसी ने संत कबीर की वाणी पर जिज्ञासा रखते हुए प्रश्न किया कि

कबीर शीतल जल नहीं, हिम ना शीतल होयl
कबीर शीतल संत जन, राम स्नेही सोयll


इस दोहे के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बाबा ने बताया कि यह बहुत ही सुंदर शब्दों की रचना कबीर ने की है जिसमें उन्होंने संत के ह्रदय को इतना अधिक शीतल बताया है कि जिसके समान शीतल दुनिया में कोई दूसरा नहीं, यहां पर तीन तरह के शीतल रूप बताया गया है जल, बर्फ और मक्खन जहां इन तीनों की ही प्रकृति शीतलता रूप धारण किए हुए है जल को जब हम स्पर्श करते हैं तो भी हमें शीतलता प्राप्त होती है बर्फ भी शीतलता प्रदान करता है और उसी तरह मक्खन से भी शीतलता प्रदान होती है, परंतु जल भी गर्म होकर सूख जाता है और बर्फ भी पिघल जाता है और मक्खन भी पिघल जाता है, संत का हृदय ऐसा है जो शाश्वत है अजय है अमर है वह प्रेम और स्नेह की शीतलता सदैव ही प्रदान करता रहता है।


चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जिज्ञासा रखी की

माता लक्ष्मी को चंचला क्यों कहा जाता है, लक्ष्मी की साधना गोपनीय क्यों कही गयी है ? कृपया बतलाने की कृपा करेंगे बाबा ।, लक्ष्मी जी के इस स्वरूप को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि, माता लक्ष्मी का रूप चंचला है, वह स्वयं के अधिपति भगवान नारायण के पास भी नहीं रह पाती, क्योंकि यदि वे नारायण जी के पास आवाद गति से रुक जाए तो उनकी मति भी बिगड़ सकती है यह मां लक्ष्मी का प्रभाव है और यह माया स्वयं नारायण के द्वारा ही रचित है जिसका पालन करना आवश्यक है ब्रह्मा को विष्णु को स्वयं भगवान शिव को भी यह नियम पालन करना ही होता है।
लक्ष्मीपति का भजन करने वालों को लक्ष्मी बाधित नही करती है परंतु अत्यधिक लक्ष्मी संग्रह कर उपयोग ना हो तो वह मति को भ्रष्ट करती है अतः लक्ष्मी का रूप चंचला ही होता है।
इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ।