बालोद।15 नवम्बर गोवर्धन पर्व प्रतिदिन की भांति पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास के द्वारा सीता रसोई वाट्सएप ग्रुप में आज सुबह 10 बजे से 11 बजे एवम दोपहर 1 बजे से 2 बजे तक ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया गया जिसमें अपने ओजस्वी वाणी से गोवर्धन पूजा के बारे में संत श्री ने कहा भारतीय पर्वों की एक प्रधानता रही है कि उसमें प्रकृति का समावेश अवश्य रहता है। प्रकृति के वातावरण को स्वयं में समेटे सनातन धर्म के त्यौहार अपना अमिट प्रभाव डालते हैं। फसल के घर आने की खुशी में जहाँ दीपावली मनाई जाती है ! वहीं दूसरे दिन मनाया जाता है “अन्नकूट”। जैसा
कि नाम से ही परिभाषित हो रहा है कि नवान्न घर पहुंचने के बाद ही उसे कूटकर तैयार किया जा सकता है।
अन्नकूट के दिन नए – नए व्यंजनों को बनाकर नए अन्न का भोजन करने की परम्परा रही है। द्वापर से इसी दिन प्रारम्भ हुई गोवर्धन – पूजा।
गोवर्धन पूजा क्या है ??
जब गोकुलवासी इन्द्र की पूजा करने की तैयारी करते हैं उसी समय बालकृष्ण ने गोवर्धनपूजा का प्रस्ताव रखा। गोवर्धन पूजा अर्थात “प्रकृति पूजा”।
परमात्मा ने जब जब इस धरती पर अवतार लिया है तब तब प्रकृति से अपना प्रेम दर्शाया है। प्रकृति के संरक्षण के बिना इस सृष्टि एवं जीवमात्र का संरक्षण सम्भव नहीं है। इसीलिए परमात्मा ने अवतारों के माध्यम से गंगा – यमुना के रूप में
नदियों की पूजा, तो गोवर्धन के रूप में पहाड़ों की।
परमात्मा ने सदैव ही प्रकृति के संरक्षण को महत्व दिया है।
गोवर्धन पूजा के दिन छप्पन प्रकार के भोग भगवान को अर्पण किए जाते हैं।और भगवान उसे प्रेम से स्वीकार
करते हैं। ईश्वर आपके छप्पन भोग नहीं बल्कि आपकी भावना व श्रद्घा देखते हैं। गोवर्धन पूजा का यही कारण था कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण स्वयं करें।
आज के परिवेश में जहाँ मनुष्य एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मे तत्परता से प्राकृतिक संसाधनों का विनाश कर रहा है, वहीं वह प्रतिपल मौत के मुहाने पर खड़ा भी है। जिस प्रकार पृथ्वी का दोहन, पहाड़ों को तोड़ना मानव ने जारी रखा है उसी
प्रकार प्राकृतिक आपदायें मानव को काल के गाल में पहुँचा रही हैं। हम भूल गए कि हमारे पहाड़ स्वयं श्रीकृष्ण के स्वरूप “गोवर्धन” हैं।
हम भूल गये कि नदियां हमारी मां हैं। पृथ्वी को माता कहकर पुकारने वाला मानव आज उसी की छाती छलनी करने पर तुला है,
जिसके परिणाम स्वरूप आये दिन भूकम्प, भूस्खलन,पहाड़ों का टूटना जारी है, जो कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिए शुभ संकेत नहीं है।
मैं आज बड़े दु:ख के साथ कह रहा हूँ कि जिस प्रकार लोग अपने कृषि योग्य भूमि का शहरीकरण करते जा रहे हैं वह दिन दूर नहीं जब देश बिना अन्न के भुखमरी के मुहाने पर खड़ा होगा। समुद्र – मंथन करके देवताओं ने १४ रत्न प्राप्त किए थे। पर आज मानव समुद्र का अंधाधुंध दोहन करके आये दिन सुनामी जैसे रत्न ले रहा है और मानव जाति को मौत में ढकेल रहा है। हमें आज फिर से आवश्यकता है अपने साहित्यों को पढकर उसके मर्म को समझने की।
यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाला दिन और भी भयावह ही होगा। गोवर्धन पूजा के माध्यम से आईए हम प्रतिज्ञा करें कि हम स्वयं इनके प्रति जारूक रहकर समाज को भी जागरूक करने का प्रयास करेंगे ! तभी अन्नकूट या गोवर्धन पूजा मनाना सार्थक होगा।
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