बालोद। मनुष्य जीवन में, सत्संग अत्यधिक आवश्यक होता है, सत्संग ही है जो हमारे आत्म स्वरूप का शोधन करता है, यह शोधन केवल और केवल भक्ति का मार्ग अपनाने पर ही प्राप्त हो सकता है, मन का अंधकार मिटाते हुए हमें प्रकाश की ओर ले जाने वाला भगवान के स्वरूप एवं उनके ज्ञान से अवगत कराने वाला मार्ग केवल संतो और गुरु की वाणी से ही प्राप्त हो सकता है, कोरोना काल में, सामाजिक दूरी बनाए रखने हेतु सत्संग से हम जुड़ नहीं हो पा रहे हैं, परंतु भक्तों के उद्धार हेतु छत्तीसगढ़ के महान संत बाल योगेश्वर श्री राम बालक दास जी द्वारा, प्रतिदिन उनके द्वारा संचालित होने वाले व्हाट्सएप ग्रुप सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 और 1:00 से 2:00 बजे ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया जाता है।
संत राम बालक दास के मधुर एवं आनंद मय भजनों से युक्त,
प्रतिदिन ऋचा बहन के मीठा मोती से सुशोभित, श्रीमती पदमा देवांगन के सु विचारों से युक्त, पुरुषोत्तम अग्रवाल जी रामफ़ल , पाठक परदेसी , केशव साहू , नागेश्वर साहू , डुबोवती यादव, तन्नू साहू, शिवाली साहू के द्वारा सुंदर रामचरित मानस की चौपाइयों के गायन से मंत्रमुग्ध कर देने वाला, अधीरा पूर्वी अपर्णा बिटिया के मधुर वाणी के भजन से परिपूर्ण सत्संग परिचर्चा आज, पूरे देश में सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित हो रही है, साथ ही सत्संग के बाद बड़े ही मार्मिक ढंग से पूरे सत्संग का लेख श्री मति माया जयेश ठाकुर के द्वारा बनाया जाता है जिसे पूरे देश का अत्यधिक प्रेम एवं पूर्ण सहयोग प्राप्त हो रहा है, यह सभी के लिए धर्मिक, सामाजिक, व्यवहारिक, समसामयिक, वैज्ञानिक सभी तरह के ज्ञान का स्रोत बन गया है, इस सत्संग में जो भक्तगण जुड़ते हैं अपनी सभी तरह की जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त करते हैं।
आज की सत्संग परिचर्चा में रामफ़ल ने रामचरितमानस की सुंदरकांड की चौपाई “अस कहीं चला विभीषण जब ही….
के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबा से , बाबा ने बताया कि तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के सुंदरकांड की ये सारगर्भित पंक्तियां हैं जिसमें तुलसीदास जी ने स्पष्ट किया है कि सभी कहते हैं और मानते भी हैं कि रावण को राम जी ने मारा परंतु यह गलत है उसे किसी ने भी नहीं मारा ऐसे लोग जो धर्म से विमुख हो जाते हैं, वे स्वयं ही अपने काल को निमंत्रण देते हैं विभीषण जो कि संत स्वरूप है उन्हें जैसे ही रावण ने त्यागा उसकी आयु खत्म हो गई आयु खत्म होने से यहां पर तात्पर्य है कि शरीर तो जीवित रहेगा आपका आत्म तत्व व विवेक मर जाएगा, वह स्वरूप मर जाएगा जिसके कारण आप मनुष्य हैं आपकी मानवता और मनुष्यता मर जाएगी आपका देवत्व मर जाएगा यह सारे गुण संतो से आते हैं उन्ही संत विभीषण को लात मारकर रावण ने अपनी राज्य से निकाल दिया उसी समय रावण व उसकी सभा मर गई क्योंकि उसकी सभा का धर्म मर गया उसकी सभा का लक्ष्य मर गया वह प्राण हीन हो गई उसके बाद तो रावण को मारना केवल एक रामलीला थी जो राम ने किया यदि रावण विभीषण के कहने पर राम जी की शरण में चला जाता तो राम जी स्वयं लंका आते और सीता मैया को ले जाते और जब तक रामराज्य होता तब तक रावण राज्य भी होता परंतु यह असंभव रहा
सत्संग परिचर्चा की सुंदर बेला में संतोष श्रीवास के प्रश्न जो कि बहुत ही मनभावन होते हैं रखे जाते हैं आज संतोष श्रीवास , द्वारा एक सुभाषित श्लोक की भावार्थ जानने की जिज्ञासा हुई -“शैले शैले न माणिक्यं, मौतिक्य॔ न गजे गजे। साधुवो न हि सर्वदा, चंदने न वने वने। ” इस सुभाषित श्लोक के भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि इन पंक्तियों में कहा गया है कि सूत दारा और लक्ष्मी पापी के पास भी ही सकती है ऐसे मे कुछ लोग के विश्वास डोल जाता है परंतु जो आपके पास धर्मात्मा होता है वह गरीबी मे भी वास्तव में अमीर है क्योंकि वह शाश्वत है परंतु वह अमीरी जो एक पापी के पास दिखाई दे रही है वह नश्वर है वह कभी भी नष्ट हो सकती है।
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