डोंगरगांव। ब्लॉक में कई ऐसे देवी देवता विराजमान है जो यहां के लोगों की आस्था को और ज्यादा दृण करने के साथ साथ देवी देवताओं के प्रति श्रद्धा और विश्वास को अटल करता है। राजनांदगांव से अंबागढ़ चौंकी रोड पर डोंगरगांव ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्टेट हाईवे से लगे ग्राम घुपसाल (कु.) में बस स्टैण्ड के समीप ही मां दंतेश्वरी मंदिर का रास्ता दिखाई पड़ता है। यहां से मंदिर की दूरी करीब 400 मीटर है। मां दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी भागीराम भुआर्य से विस्तृत चर्चा करने पर उन्होंने इस मंदिर के बारे में तथा यहां की मान्यताओं के बारे में भी हमारे संवाददाता कों बताया कि ग्राम घुपरसाल में विराजित कई बरस से माता जी स्वयं आकर छोटे से पहाड़ी में विराजी है।
तब गांव के लोगों के द्वारा माता जी की पुजा अर्जना एक छोटे से मिट्टी के झोपड़ी में की जाती थी। फिर धीरे-धीरे आसपास के गांव तथा गांव के बाद शहरों तक माता की महानता फैलती गई और दूर – दूर से माता के श्रद्धालू माता के दर्शन के लिए यहां आकर अपनी मन्नते मांगते और अपनी इच्छा अनुसार यहां मंदिर में चड़ावा चड़ाते जाते। जिसके बाद यहां की दर्शा बदलती गई और अब यहां मंदिर का निर्माण काफी हद तक हो चुका है। सन् 1989 से पहले यहां जोत कलश नहीं रखा जाता था फिर 1989 में मंदिर निर्माण होने के बाद दंतेश्वरी माता की मुर्ति का स्थापना करने के साथ ही चैत्र और क्वांर नवरात्रि में ज्योति कलश और हवन पुजन के साथ ही यहां श्रद्धालुओं का आना और बढ़ता गया नागपुर, रायपुर, टाटा आदि बड़े शहरों से बड़ी संख्या में लोग यहां कर ज्योति कलश रखते है और अपनी मनोकामना पूर्ण करते है।
सात बहनों में सबसे छोटी बहन है माता घुपसलहीन
आगे उन्होंने बताया कि मां दंतेश्वरी का पहला स्वरूप बस्तर के दंतेवाड़ा में स्थापित है जो सात बहनों के रूप में प्रकट हुई। उनका अन्य मंदिर विजयपुर, जुन्नापानी, माहुद, अंबागढ़ चौकी कान्हे, दनगढ़, छुरिया में स्थापित है वहीं उनकी सबसे छोटी बहन घुपसलहीन माता के रूप में घुपसाल में विराजमान है। मां दंतेश्वरी मंदिर संतान प्राप्ति के उद्देश्य से भक्तों में खासा महत्व रखता हे। माता प्राचीन काल से हमारी रक्षा करते आ रही है यहां आने वाले लोगों को भी माता निराश नहीं करती यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं की माता मनोकामना पूर्ण करती है।
मां दंतेश्वरी की यह है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि मां दंतेश्वरी का मंदिर संतान प्राप्त के लिए अंचल तथा पूरे क्षेत्र में प्रख्यात है। इसका प्रमाण कई दंपत्तियों ने दिया है। वहीं मंदिर में दोनों नवरात्र में भक्त ज्योति कलश प्रज्जवलित कराते है। मंदिर समिति के अध्यक्ष चमारराय साहू तथा भागीराम भुआर्य ने बताया कि देवी पुराण में सती के इक्यावन शक्ति पीठों का वर्णन है जबकि तंत्र चुणामणी के अनुसार बावनवां शक्ति पीठ दंतेश्वरी मां को बताया गया है, जो बस्तर के दंतेवाड़ा में विराजमान है। कहानी के अनुसार माता सती के दांत यहां गिरे थे जिसके अनुसार इसे दंतेश्वरी या रक्तदंतिका के नाम से जाना जाता है। मां दंतेश्वरी जो सात रूपों में प्रकट हुई थी। उनका सातवां रूप ग्राम घुपसाल में विराजमान है। उन्होंने बताया कि यहां की प्रमाणिकता का आभास भक्तों को स्वत: ही हो जाता है उनकी मनोकामना भी पूर्ण होती है। यहां पहाड़ी पर पहुंचने पर बहुत ही सुंदर दृश्य नजर आता है चारों ओर बड़े – बड़े पेड़, घना जंगल, शांत वातावरण प्रकृति की सुंदरता में चार चांद लगा देता है।
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