कहते हैं जिनके घर की छत से पानी टपकता हो वही छत की अहमियत को भलीभांति समझ सकता है।
बालोद/राजनांदगांव।आज हम आपको गरीबी की भट्टी से तप कर निकली एक ऐसे महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जो त्याग बलिदान और कड़ी परिश्रम के बलबुते लाखों महिलाओं की प्रेरण बन गई।
फूलबासन बाई ये वो नाम है जो आज किसी परिचय की मोहताज नहीं।
फूलबासन बाई 23 अक्टूबर को सोनी टीवी के सबसे बड़े मंच कौन बनेगा करोड़पति के मंच पर त्याग तपस्या और बलिदान कि कुछ पल बिग बी अमिताभ बच्चन की के समक्ष सांझा कर उनके सवालों का जवाब देंगे।
तो आप भी 23 अक्टूबर को कौन बनेगा करोड़पति देखना ना भूलें।
“डर मुझे भी लगता था – ग़रीबी से, बेरोज़गारी से, कुपोषण से, नशे से लेकिन फिर मैंने अपनी बहनों को आवाज़ लगायी, एक संकल्प समाज की सूरत बदलने के लिए, संकल्प कुंठित मानसिकता और रूढ़िवादी परम्पराओं को उखाड़ फेकने का। आज सब कुछ सफल होता दिखता है” I यह कहानी है पद्मश्री फूलबासन बाई यादव की..
फूलबासन बाई बचपन में अपने माँ-बाप के साथ चाय के ठेले में कप धोने का काम करती
ग़रीबी इतनी की जब घर में भोजन करने का समय आता तो माता-पिता कहते की आज एक ही समय का भोजन मिलेगा। कई बार तो हफ़्तों खाना नहीं मिलता था ।ग़रीबी के चलते कभी कभी तो महीनों नमक नसीब नहीं होता और एक ही कपड़े में ही महीने निकल जाते। 12 वर्ष की उम्र में फ़ूलबासन भाई की शादी एक चरवाहे से करवा दी गयी मानो कम उम्र में एक बड़ी ज़िम्मेदारी के कुए में इस मासूम बच्ची को धकेल दिया हो।
कुछ साल में चार बच्चे हो गए लेकिन घर की आर्थिक स्थिति जस की तस थी
अपने बच्चों को दो वक़्त का भोजन देने के लिए फूलबासन बाई दर दर अनाज माँगती लेकिन किसी एक ने नहीं सुनी । हर शाम अपने बच्चों को भूखे पेट देख फूलबासन ख़ून के आँसू रोती लेकिन इन चुनौतियों के सामने कभी समर्पण नहीं किया।
विपरीत परिस्थिति को अवसर मानकर फूलबासन बाई ने प्रण लिया की अब वे
ग़रीबी, कुपोषण, बाल- विवाह से लड़ेंगी। दस बहनों का एक समूह बनाया जिसके तहत दो मुट्ठी चावल और हर हफ़्ते दो रुपए जमा करने की योजना बनाई लेकिन वक़्त अभी भी फूलबासन बाई से ख़फ़ा था। संगठन बनाने की यह मुहिम फूलबासन बाई के पति को पसंद नहीं आई और फिर समाजिक विरोध भी शुरू हो गया। समाज में सब कहने लगे फूलबासन पागल हो गयी है , महिलाओं का समूह बना परम्परा के ख़िलाफ़ काम कर रही है लेकिन समाज को एक दिशा देने के उद्देश्य से निकली फूलबासन के संकल्प के आगे समाज के सारे ताने- बाने शून्य पड़ गए।
महिलाओं की मदद से जल्द ही समिति ने बम्लेश्वरी ब्रांड नाम से
आम और नींबू के अचार तैयार किए और छत्तीसगढ़ के तीन सौ से अधिक स्कूलों में उन्हें बेचा जाने लगा जहां बच्चों को गर्मागर्म मध्यान्ह भोजन के साथ घर जैसा स्वादिष्ट अचार मिलने लगा. इसके अलावा उनकी संस्था अगरबत्ती, वाशिंग पावडर, मोमबत्ती, बड़ी-पापड़ आदि बना रही है जिससे दो लाख महिलाओं को स्वावलम्बन की राह मिली है। श्रीमती यादव के मुताबिक अचार बनाने के इस घरेलू उद्योग में लगभग सौ महिला सदस्यों को अतिरिक्त आमदनी का एक बेहतर जरिया मिला और दो से तीन हजार रूपये प्रतिमाह तक कमा रही हैं।
श्रीमती यादव ने अपने 12 साल के सामाजिक जीवन में कई उल्लेखनीय कार्यों को महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से अंजाम दिया है
महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से गांव की नियमित रूप से साफ-सफाई, वृक्षारोपण, जलसंरक्षण के लिए सोख्ता गढ्ढा का निर्माण, सिलाई-कढ़ाई सेन्टर का संचालन, बाल भोज, रक्तदान, सूदखोरों के खिलाफ जन-जागरूकता का अभियान, शराबखोरी एवं शराब के अवैध विक्रय का विरोध, बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ वातावरण का निर्माण, गरीब एवं अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के साथ ही महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में भी श्रीमती यादव ने प्रमुख भूमिका अदा की है। आज लाखों महिलाओं का यह समूह राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए नए कीर्तिमान रच रहा है।
कभी दो वक़्त के खाने की भी मोहताज थी और आज लाखों महिलाओं का समूह बनाकर सफलता की इबादत लिख रही श्रीमती फूलबासन बाई के जज़्बे एवं हिम्मत को सलाम, सच कहते हैं एक बड़े बदलाव के लिए पागलपन चाहिए, जुनून चाहिए ।
नोट:- आपको बतला दे की फूलबासन बाई के बारे में ली गई जानकारी kosal कथा वेबसाइट से ली गई है।
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