बालोद/डौंडीलोहारा। सीता रसोई संचालन वाट्सएप ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया जा रहा है, सभी सत्संगीयों के साथ ने पावन सत्संग को प्रतिदिन का पर्व बना दिया है, ऑनलाइन सत्संग के 2 घंटों में भक्त ऐसे जोड़ते हैं जैसे कोई आनंद उत्सव हो रहा हो आनंद ही आनंद प्राप्त होता है, नित नवीन ज्ञान से जिज्ञासु अविभूत होते हैं संत श्री के द्वारा पूर्ण प्रयास भी किया जाता है कि वे भक्तों के अंतर्मन की चेतना का उद्भव करे, ज्ञान का प्रकाश हो, कल्याण की भावना लिए यह संत समागम त्रिवेणी संगम से कम नहीं, जिससे आज हम घर बैठे ही डुबकी लगाकर अपने पापों से पार पा रहे हैं
आज की सत्संग परिचर्चा में संत राम बालक दास ने सत्य क्या है इसे आप कैसे परिभाषित करते हैं यह किन शब्दों के रूप में उल्लेखित हो, इसका बोध हमें कराया सत्य क्या है यह कोई नहीं जानता, सत्य को बोला जाए या उसे जाना जाए
कभी-कभी तो सत्य की रक्षा हेतु असत्य का संभाषण भी करना आवश्यक हो जाता है चुकी, सत्य को आचरित करने हेतु उसे पोषित करने हेतु असत्य का संभाषण किया गया, इसलिए असत्य वाक्य को भी उचित ठहराया जा सकता है, जैसे भगवान श्री कृष्ण जी ने, कई असत्य संभाषण कीया उन्हें धर्म की रक्षा एवं सत्य का पोषण करना था, और वे परमात्मा कहलाए, आज उनका आचरण और उनके गुण एवं लीलाएं हमारे लिए उदाहरण है।
सत्य का एक पक्ष जो हम देखते आ रहे हैं, या जो हमें दिखाया जा रहा है, या जिसे हम देखना चाहते हैं या जो हम देखने वाले हैं, क्या वह सत्य है या जो हमने कभी देखा ही नहीं वह सत्य हैं, सत्य के कई रूप है भगवान शंकर ने कहा भी है कि संसार जो दिखता है वह वास्तव सत्य नही है, सत्य जो दिखता है तो वह सत्य कैसे है, तो जो हम अपनी दृष्टि से देखते हैं वह क्या है, जो हमारे पास अभी दृष्टि है वह सत्य दृष्टि ही नहीं वह मिथ्या दृष्टि है।
सत्य को देखने की दो प्रकार की दृष्टि अप्राप्त है चर्मदृष्टि और मिथ्या दृष्टि
जिस जिससे हम संसार को देखते हैं वह मिथ्या दृष्टि है, दृष्टि जो सूक्ष्मता को देख ही नहीं पाती, तू वह इन झूठे नैनो से सत्य को कैसे देख पाएंगे यदि संसार में सत्यता को देखना है तो हमारी दृष्टि को सत्यता की दृष्टि बनाना होगा, मनुष्य को स्वयं अपने जीवन में झांकना चाहिए जिसमें हमारा मन, हमारा चित, लाभ, द्वेष, लोभ मोह, क्रोध, अहंकार, वेग आवेश सारे भाव ही हमारे हैं, यह सब हमारे भाव होते हुए भी क्या हम उसे देख पाते हैं, नहीं हम उन्हें नहीं देख पा रहे हैं और हो सकता है इन्हीं में कहीं सत्य भी छुपा हो, सत्य को देखने के लिए जो हम चर्म चक्षु से नहीं देख पा रहे वह आंखें बंद करके ध्यान समाधि में मन को एकाग्र करके साधना के द्वारा शास्त्रों के अध्ययन,
संतों की कृपा से, सदशास्त्र की कृपा से, संतों की वाणी के द्वारा आप उस सत्य को देखने का प्रयास कर सकते हैं
संत के कृपा से प्रभु का नाम लेते हैं प्रभु की कथा सुनते हैं प्रभु का श्रवण करते हैं उन्हें सत्य का लाभ अवश्य प्राप्त होता है, हमें बचपन से ही माता-पिता गुरुजनों शिक्षकों रामायण गीता साधु संतों द्वारा बार-बार दबाव देकर बताया जाता है कि यह करिए यह सत्य है पूजा पाठ यज्ञ भजन कीर्तन स्वर्ग नर्क पाप पुण्य धर्म अधर्म अच्छा बुरा यह शब्द ही मान्य है हम मान लेते हैं कि यही सब कुछ सत्य है परंतु केवल सुनकर यह मान लेना है कि यही सत्य है सर्वथा उचित नहीं स्वामी विवेकानंद जी ने कहा भी है कि सत्य का भी परीक्षण करो तब उसे धारण करो, असत्य किसी भी कारणवश बोला गया हो उसके लिए आप को दंड का भागी अवश्य होना पड़ता है, असत्य कहने के लिए भले ही आप को परमात्मा क्यों ना कहे परंतु असत्य के पाप का बोझ तो आपको झेलना ही होगा, सत्य की रक्षा हेतु उसके पालन हेतु अगर आप असत्य बोल रहे हैं तो ही वह क्षमा योग्य है, और यदि आप अपनी उन्नति अपने कल्याण अपने कार्य अपने व्यापार अपनी जीवन चर्या अपने कर्मों हेतु असत्य भाषण करते हैं तो वह दोषपूर्ण है सत्य का संकल्प ले तब आप भी जान पाएंगे कि सत्य क्या है जो दिख रहा है या जो हम कह रहे हैं इस प्रकार अपने आसपास का वातवरण खानपान बोलचाल को सत्यव्रत बना के रखे तो सत्य दृष्टि प्राप्त होगी, वह सत्य दृष्टि जो झूठ को निग्रह कर सत्य से परिचित कराएं उसके लिए केवल मुख में ही नहीं हृदय में भी सत्यता रहनी चाहिए हदय निर्मल होना चाहिए किसी से भी छल कपट नहीं करीये चाहे घर परिवार हो या अंदर बाहर या कोई भी व्यक्ति, आडंबर रहीत बनिये जैसे आप हैं वैसे ही रहिये तभी आपको सत्य की दृष्टि मिलेगी तथा सत्य का आचरण करने का संकल्प करें।
सरस्वती साहू ने, राम चरित्र की चौपाई “साधु अवज्ञा तुरत भवानी…… को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की
, चौपाई का विस्तार करते हैं बाबा जी ने बताया कि, रामचरितमानस की इन चौपाई में कहा गया है कि जो साधु रूप को देख कर हंसता है उसके गुणों का चिंतन कीये बिना अपमान कर देता है जो साधु दर्शन नहीं साधु का उपहास कर देता है ऐसे साधु उपहासक व्यक्ति को संत गण तो भले ही माफ कर दे परंतु प्रकृति और परमात्मा उसे कभी माफ नहीं करती इसीलिए कभी भले ही संतों का सम्मान करो ना करो परंतु उनका अपमान नहीं करना चाहिए
दिनेश पटेल जी ने प्रश्न किया कि ऐसे स्वजन जिनकी श्राद्ध तिथि अगर ज्ञात ना हो तो उस दशा में हमें क्या करना चाहिए, बाबा जी ने बताया कि वे स्वजन जिन की तिथि हमें ज्ञात ना हो तो मातृ पक्ष है तो सप्तमी या नवमी में उनका श्राद्ध करना चाहिए और पितृपक्ष है तो एकादशी और अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए।
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