बालोद। प्रतिदिन की भांति आज भी सीता रसोई संचालन ग्रुप में अति सुंदर अद्भुत सत्संग का आयोजन पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर में 1:00 से 2:00किया गया, अभी पितृपक्ष प्रारंभ हो चुका है भक्त जनों की जिज्ञासा भी आज के सत्संग में पितृपक्ष से संबंधित रहे, इन प्रश्नों पर बाबा जी ने अपने अद्भुत ज्ञान, व्यावहारिकता एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सभी की जिज्ञासाओं को तृप्त किया।
रामपुर से पोषण जी ने जिज्ञासा रखी की गोत्र की मृत्यु के 1 वर्ष के बाद जब तक उन्हें पीतर में नहीं मिलाया जाता कहा जाता है कि उनका तर्पण नहीं करना चाहिए, बाबा जी ने इस विषय पर बताया कि यदि 1 वर्षी नहीं हुआ है और वह हमारे स्वर्गीय परिजन है तो पितर पक्ष में उन्हें याद करना चाहिए पवित्र तीर्थों में या नदी सरोवर या घर में तर्पण कर देना चाहिए इसमें कोई दोष नहीं है।
आमगांव महाराष्ट्र से अरुण पांडे जी ने जिज्ञासा रखी पितृपक्ष में पितरों का नाम लेकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर तर्पण करना चाहिए तथा श्रीमद् भगवद्गीता का कोई कहते हैं कि 7 वा अध्याय का पठन तथा कोई कहते हैं की 15 वे अध्याय का पठन करना चाहिए तो सही में कौनसे अध्याय का पठन करना चाहिए इस बारे में थोड़ा प्रकाश डालने की कृपा करेंगे।
संत श्री ने बताया कि गीता के सभी अध्याय पवित्र है प्रत्येक श्लोक प्रत्येक वचन पवित्र है
आप संपूर्ण गीता का पाठ कर सकते हैं कोई भी अध्याय पितरों के नाम पर किया जा सकता है, बल्कि हो सके तो संकल्प ले की गीता के 18 अध्याय को आज ही से शुरू करके पितर के 15 दिन में उसे सम्पूर्ण करे यह पितरों के सम्मान में अति उत्तम होगा।
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी थानखम्हरिया ने प्रश्न किया कि यदि गयाजी में पिंडदान कर दिया जाए तो उसके बाद भी पितरों का श्राद्ध तर्पण करना चाहिए कि नहीं, बाबा जी ने कहा कि यदि आपने गयाजी में या पुष्कर में पितरों का तर्पण कर भी दिया है तो भी भले ही पितरों की प्रतिष्ठा दिया तर्पण ना करें लेकिन उनके लिए एक दिया अवश्य लगाएं।
बाबा संत श्री राम बालक दास महात्यागी
भक्तों ने जिज्ञासा रखी की पितरों की पूजा जाप विधि जिससे सभी पितर तृप्त हो जाए उसे बताने का कष्ट करें
बाबा जी ने बताया कि भगवान से जुड़े पूजा विधान आप शुरू करते हैं, तो किसी भी परिस्थिति में उस में विघ्न नहीं आना चाहिए, यदि गोत्रज में सूतक है तो आप बिना गोत्र के व्यक्ति से अपने घर में पूजा करवाएं, और स्वयं के घर में सूतक है तो लड्डू गोपाल और शालिग्राम की प्रतिमा को किसी ब्राह्मण के घर दे दिया जाता है इस प्रकार दैनिक पूजा में विघ्न ना आए इसका ध्यान रखें।
पितरों को तृप्त करने के लिए आवश्यक है कि आप अपने परिजनों का जीते जी ही सम्मान करें, उनको खाने को अच्छा भोजन दें, उनकी देखभाल उनके सुख का पूरा ख्याल रखें चाहे आप से बड़े हो या छोटे उनको स्नेह अवश्य प्रदान करें, ऐसा बिल्कुल नहीं कि मरने के बाद ही आप उनको पितृ पक्ष में ही याद करें और जो आप उनके लिए भोजन प्रदान करेंगे वह भी खाएंगे, यदि ऐसा है तो पूरे साल आप यह कार्य करें, केवल पितृ पक्ष में ही क्यों उनके लिए सबसे बड़ा तृप्ति कार्य यही है कि आप उनके द्वारा संचालित किए गए परंपराओं का पूर्णता निर्वहन करें, संस्कार और सभ्यता हमेशा बनी रहे जिसे देख वह अवश्य ही तृप्त होंगे
डामन सिन्हा जी बेरला ने शिव जी को जगत पिता कहे जाने की बात पर प्रकाश डालने हेतु बाबा जी से विनती की, बाबा जी बताते हैं कि, एक समय श्री गणेश जी ने शिवजी से पूछा कि पिताजी आप तो मेरे पिता है तो आप जगत पिता कैसे हुए, तब शिवजी ने कहा कि, शिव शब्द का अर्थ सब का कल्याण होता है, शिव कर देना अर्थात उसका कल्याण कर देना।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि
शिवजी का भेष देखने पर लगता है कि जो कपाल धारण किए हुए हैं विभूति लगाए हुए हैं अद्भुत रूप धारण किए हुए हैं परंतु जगत कल्याणकारी है, पितरों में भी सबसे बड़े पीतर आदि देव शिव ही है पितृ पक्ष में प्रधान देवता भगवान शिव को ही माना जाता है
जो संपूर्ण जगत की चिंता करता है वह केवल अपनी या अपने परिवार की ही नहीं अपितु संपूर्ण जगत की चिंता करता है वासुदेव कुटुंबकम उसका धर्म होता है संसार का प्रत्येक जीव जंतु पेड़ पौधा सभी उसके प्रिय होते हैं यही जगत पिता का रूप है
पाठक परदेसी जी ने पूजा के प्रारंभ में स्वस्ति वाचन पर प्रकाश डालने की जिज्ञासा रखी, संत श्री जी ने कहा कि स्वस्तिवाचन अर्थात सबका मंगल भावना रखना, कोई भी दुखी ना हो तभी स्वस्थ रहे सबका कल्याण हो सभी सुखी और संतान धन-धान्य से संपन्न हों सब का कल्याण हो और जगत का कल्याण हो तो उसमें मेरा भी कल्याण हो यही भावना होती है अतः पूजन के प्रारंभ में स्वस्ति वाचन आवश्यक होता हैं।
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