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स्पेशल स्टोरी- बिना दूरबीन आंखों से देख सकेंगे इस धूमकेतु को, 22 जुलाई को होगा धरती के सबसे करीब, अभी नही देखे तो 6800 साल बाद फिर गुजरेगा यह पुच्छल तारा, बालोद में भी दिख रहा है दुर्लभ नजारा, क्या है इसका रहस्य, कब देख सकतें हैं आप इसे जानने के लिए पढ़े पूरी खबर

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दैनिक बालोद न्यूज़ के लिए खगोल शास्त्र के जानकार व्याख्याता बीएन योगी की रिपोर्ट

बीएन योगी- खगोल शास्त्री बालोद

बालोद। इस महीने आपको सूर्यास्त के तुरंत बाद उत्तर पश्चिम दिशा में एक चमकता हुआ पूंछ वाला तारा यानि कि पुच्छल तारा नियोवाइज दिख रहा है। जिसे सम्पूर्ण भारत से नग्न आंखों से देखा जा सकता है। इस बार मौका चूके तो यह दोबारा 6800 साल बाद दिखेगा। यह नियोवाइज धूमकेतु 22 जुलाई को जब पृथ्वी के सबसे करीब होगा लेकिन उस वक्त भी वह हमसे 10.3 करोड़ किलोमीटर दूर होगा। इस धूमकेतु का व्यास 5 किलोमीटर और पूंछ की लंबाई अनुमानित 80 हजार से एक लाख किलोमीटर तक है।

नियोवाइज नाम कैसे पड़ा ?

इस धूमकेतु को विज्ञान की भाषा में सी/2020 एफ3 नियोवाइज के नाम से जानते हैं। इस कॉमेट का नाम नियोवाइज नासा के नियर.अर्थ ऑबजेक्ट वाइड.फील्ड इंफ्रारेड सर्वे एक्सप्लोरर मिशन के नाम पर रखा गया है। क्योंकि इसी मिशन ने इस धूमकेतु की खोज 27 मार्च 2020 में की थी। इस स्पेसक्राफ्ट को दिसंबर 2009 में लॉन्च किया गया था।

क्या होता है धूमकेतु ?

धूमकेतु भी ग्रहो, उपग्रहो और क्षुद्रग्रहों की तरह सूरज का चक्कर काटते हैं, लेकिन वे ठोस चट्टानी नहीं होते बल्कि धूल, बर्फ और गैसों से बने होते हैं। जब ये धूमकेतु सूरज की तरफ बढ़ते हैं तो इनकी बर्फ और धूल सूर्य के गर्मी से भाप में बदलने लगते हैं जो हमें पूंछ की तरह दिखता है। खास बात यह है कि धरती से दिखाई देने वाला धूमकेतु दरअसल हमसे बहुत ही दूर होते है लेकिन सौर प्रकाष को परावर्तित करते हुए आसमान में चमकदार दिखते है।

धूमकेतु कहां से आते है ?
खगोल शास्त्र के जानकार व भौतिक के व्याख्याता बालोद के बीएन योगी ने बताया इस बात में अभी भी संशय है कि धूमकेतु भी हमारे सौर परिवार का एक सदस्य है या ये अन्तरतारकीय पिण्ड है क्योंकि इनका अस्तित्व अन्य ग्रहो या उपग्रहो की तरह स्थायी नहीं होते तथा इनका परिक्रमण काल भी दीर्घकालिक होता है अतः एक मानवकाल में बहुत कम ही धूमकेतु देखने का अवसर मिलता है जैसे प्रसिद्ध धुमकेतु हेली 1986 में दिखा था और अब 76 साल बाद 2061 में दिखेगा। इसी प्रकार 1997 में उत्तरी गोलार्द्ध से देखा गया धूमकेतु 2533 वर्श बाद सन 4380 में दिखायी देगा। ये धूमकेतु सौर सीमा के अंतिम छोर में स्थित कुइपर बेल्ट के ऊर्ट क्लाउड में जन्म लेते है और सुर्य के गुरूत्वाकर्शण बल से आकर्शित होकर सूर्य की ओर चल पड़ते है।

नियोवाइज खास क्यों है?

अधिकांश धूमकेतु सूर्य के समीप जाकर ऊष्मा के कारण पिघल कर वाष्पित होते हुए नष्ट हो जाते है या सूर्य के प्रबल गुरूत्वाकर्षण के कारण उसमें मौत का छलांग लगाकर समाहित हो जाते है, ऐसी आशंका नियोवाइज को लेकर भी था लेकिन ये धूमकेतु 3 जुलाई को सूर्य के सबसे करीबी दूरी से गुजरने के बाद भी वाष्पित होने से या सीधे सूर्य में मौत का छलांग लगाने से बच गया इसलिये भी ये धूमकेतु खास है।

इन तरीकों से आप नियोवाइज धूमकेतु देख सकते हैं


शासकीय कन्या आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बालोद में भौतिकी के व्याख्याता एवं खगोलषास्त्री बी.एन.योगी ने बताया कि अंतरिक्ष पिण्डों को देखने के लिये कोई छोटा खगोलीय दूरबीन या बाइनाकूलर सहायक होता है लेकिन ये धूमकेतु अभी बिना किसी उपकरण के भी दिखाई दे रहा है। इसे देखने के लिये बादल रहित स्वच्छ आसमान और अंधेरे वाले स्थान में जाकर उत्तर पश्चिम दिशा में सूर्यास्त के बाद सप्तऋशि तारामंडल के नीचे वाले भाग में चमकदार पूंछ वाले तारे के तरह देखा जा सकता है।

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