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Exclusive- इस गांव में चिपको आंदोलन की यादें हुई ताजा, लोगों ने हरेली पर 500 पौधे रोपे तो पुराने पेड़ों पर चिपक कर महिलाएं बोली हम इसे नहीं कटने देंगे 1974 के उत्तराखंड की तर्ज पर बालोद में चिपको आंदोलन की दिखी झलक

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बालोद/ अर्जुन्दा। बालोद राजनांदगांव मार्ग पर स्थित एक गांव है डुडिया। जहां पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहले से काफी अच्छा प्रयास हुआ है। इसी के नतीजे हैं कि यहां एक बड़े क्षेत्र पर हरियाली फैली हुई है। जहां पर एक बड़ी नर्सरी है जो लोगों को सहज ही आकर्षित करती है। आज हरेली पर यहां ग्रामीणों ने 500 नए पौधे रोप कर इस योजना को विस्तार दिया तो वही चिपको आंदोलन की यादें भी यहां ताजा हो गई।

चिपको आंदोलन की तर्ज पर गांव की महिलाओं ने पहले से तैयार पेड़ों से चिपक कर कहा कि हम इसे नहीं कटने देंगे। जब तक जिंदगी है इन पेड़ों की रक्षा करेंगे। इसके अलावा गांव के प्रमुख लोगों व प्रशासन के अलावा सामाजिक व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे लोगों की मौजूदगी में पौधे भी लगाए गए।

जिस के मुख्य अतिथि जनपद सदस्य श्रीमती जोहर ठाकुर, जनपद सभापति मोहित साहू, समाज सेविका कविता गेंड्रे, ग्रीन कमांडो वीरेंद्र सिंह, पर्यावरण प्रेमी भोज साहू, सरपंच ललिता भूआर्य, उपसरपंच पवन सिन्हा एवं सभी पंच उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन चक्रधर पवार व सचिव बीआर साहू ने किया। रोजगार सहायक पूरन साहू, मोहित देवांगन, समाज सेवक पंकज चौधरी, मलखम भुआर्य सहित अन्य भी शामिल रहे। कुल 500 पौधे रोपे गए। जिसमें 100 फलदार तो 400 अन्य पौधे शामिल हैं।

एक नजर में जरा चिपको आंदोलन के बारे में भी जानिए

चिपको आंदोलन 1974 की तस्वीर


चिपको आंदोलन एक पर्यावरण रक्षा का आंदोलन था। यह भारत के उत्तराखंड राज्य में किसानों ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परंपरागत अधिकार जता रहे थे। 1974 को चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन में महिला और पुरुष पेड़ से लिपट कर पेड़ों की रक्षा करते थे। इसी वजह से आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था। चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले में गोपेश्वर नाम के एक स्थान से की गई थी। इस आंदोलन में महिलाओं का खास योगदान था।


बता दें कि इस अधिनियम के तहत वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना है। कहा जाता है कि चिपको आंदोलन की वजह से साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था। इस विधेयक में हिमालयी क्षेत्रों के वनों को काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया गया था। चिपको आंदोलन न सिर्फ उत्तराखंड में बल्कि पूरे देश में फैल गया और इसका असर कई जगह देखने को मिला।

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