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हरेली विशेष- मिलिए इनसे ये हैं गेंड़ी के सरताज, 10 सालों से अपने साथियों के साथ गेंड़ी की परंपरा को बचाने पहल कर रहे हैं सुभाष बेलचंदन, नेशनल व इंटरनेशनल पर दिखा चुके प्रतिभा

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अपनी टीम के साथ शिक्षक सुभाष बेलचंदन

दीपक यादव,बालोद। आज हरियाली अमावस्या है, जिसे छत्तीसगढ़ी भाषा में हरेली के नाम से जाना जाता है। यह छत्तीसगढ़ वासियों के लिए पहला तिहार भी है। इस हरेली तिहार पर जहां छत्तीसगढ़ सरकार गोधन न्याय योजना की शुरुआत कर रही है तो वही हम इस हरेली की सबसे खास परंपरा गेंड़ी चढ़ने की परंपरा से आपको अवगत कराने जा रहे हैं। जिले के डौंडीलोहारा ब्लॉक के अंतिम छोर पर वनांचल में बसा एक गांव है चिलमगोटा, यहां के रहने वाले एक शिक्षक हैं सुभाष बेलचंदन। जो शिक्षक के साथ गेंड़ी के सरताज के नाम से ज्यादा जाने जाते हैं, जो पिछले 10 सालों से गेड़ी की परंपरा को हरेली में बचाए रखने के लिए लगातार अपने साथियों के साथ प्रयास कर रहे हैं।

उनका एक वनांचल दल भी बना हुआ है। जिसमें 26 सदस्य हैं। और इस दल के सभी सदस्य जिला नहीं बल्कि प्रदेश स्तर और विदेशों तक नाम कमा चुके हैं। छत्तीसगढ़ी परंपरा को विदेशों तक पहुंचाने में इस टीम का अहम रोल रहा है। हर साल हरेली में कुछ नया करने का जुनून लिए सुभाष बेलचंदन इस बार कोरोना के चलते शालीनता से चिलमगोटा में हरेली मनाने जा रहे हैं क्योंकि इस बार भीड़ भी नहीं जुटाना है, फिजिकल दूरी का पालन करते हुए लोगों को मास्क पहनने का संदेश देते हुए वे प्रमुख ग्रामीणों व अपनी टीम के सदस्यों के साथ मिलकर हरेली मना कर गांव के बच्चों व युवाओं को गेड़ी परंपरा को जीवित रखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

स्कूल में चलती है गेंड़ी की पाठशाला ,खेल-खेल में बच्चे जानते हैं अपनी संस्कृति 

शिक्षक सुभाष बेलचंदन गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाते हैं। सत्र के दौरान खेलकूद की गतिविधियों के बीच वे रोज बच्चों को गेंड़ी की भी पाठ सिखाते हैं उनकी यह अलग से कक्षा चलती है। जिसमें वे खाली समय में बच्चों को गेड़ी की विशेषता, उसका इतिहास, इस परंपरा की शुरुआत के बारे में उन्हें बताते हैं और बच्चे उनसे प्रभावित होकर गेंड़ी चढ़ना और उस पर मस्ती करना सीखते हैं।

यह एक ऐसा गांव है जहां हर घर का बच्चा गेड़ी चढ़ता है और उन्हें क्रिकेट या अन्य खेलों के अपेक्षा गेड़ी चलाने में ज्यादा मजा आता है। इस हरेली पर्व पर ही बच्चे गेंड़ी चढ़ने की तैयारी कर रहे हैं और तो गेंड़ी दल के जुड़े हुए कलाकारों को भी इस पर्व का बेहद बेसब्री से इंतजार रहता है। क्योंकि उनके लिए काफी खास है। इसी के कारण उनकी पहचान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई है इसलिए इस त्यौहार को अपने विशेष पर्व के रूप में मनाते आ रहे हैं।

युवा महोत्सव में भी राज्य स्तर पर हुई प्रस्तुति 

गेड़ी के इस कार्यक्रम को सुभाष बेलचंदन के नेतृत्व में हाल ही में आयोजित राज्य शासन द्वारा युवा कला महोत्सव में भी स्थान मिला। राज्यस्तरीय मंच पर भी प्रस्तुति दी गई बालोद जिले में गेड़ी संस्था के नाम से यह इकलौती ऐसी संस्था है जिसके कलाकार लगातार इस परंपरा को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।

कलाकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। जब पुराने कलाकार कुछ कारणों के चलते दल छोड़ते हैं तो उनकी जगह नए युवा कलाकार ले लेते हैं और वे खुद इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। इस संस्था में 30 से 35 साल तक के लोग भी हैं जिनके बच्चे हैं वे अपने बच्चों को भी अपने साथ गेड़ी परंपरा से जोड़ रहे हैं और बचपन से ही बच्चे गेड़ी का महत्व समझते हुए हरेली पर उसकी पूजा-अर्चना भी करते हैं।

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