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गर्मी में लोगों के प्यास बुझाने के लिए देसी फ्रीज व मिट्टी का थरमस तैयार कर रहे हैं सोनाऊराम कुम्भकार के परिवार

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पुरा परिवार अपने पुस्तैनी काम का संभालकर कर रहे हैं जीवकार्पण

दैनिक बालोद न्यूज/घनश्याम साव/डोंगरगांव।डोंगरगांव नगर में सालों से करीब सौ से अधिक परिवार मिट्टी के सामान बनाते आ रहें है और यहीं उनकी रोजगार का मुख्य स्त्रोत है। पुराने समय में कुंभकार केवल खपरैल, दीया और मटकी आदि बनाया करते थे। जागरूकता आने और मिट्टी कला में बदलाव के बाद कुछ कुंभकारों ने समय और आधुनिकता व लोगों की पसंद में बदलाव को देखते हुए उपयोगी और सजावट के समान बनाकर उन्हें बेचना शुरू कर दिया है। इनके द्वारा बनाये गये नये नये डिजाईन के समानों को लोग काफी पसंद भी कर रहें है, किन्तु दलालों के माध्यम से बिक्री होने के कारण कुंभकारों को उनकी मेहनत का सही दाम तो मिल नहीं पा रहा है और साथ ही उनकी कला भी उभर नहीं पा रही है।

गर्मी को देखते हुए तैयार कर रहे हैं देसी फ्रीज मटकी व मिट्टी के थरमस

गर्मी के शुभारंभ हो चुका है ऐसे में प्यास बुझाने के लिए लोग ठंडा पानी से गला तारने के लिए देसी फ्रीज के नाम से मशहूर मटका का उपयोग करते हैं जो हर आदमी के बजट में होता है और इस रोजगार मौके को कुम्हार परिवार भली भांति परिचित होते हैं इसलिए गर्मी से पहले कुम्हार दिन रात मेहनत कर मिट्टी से मटका तैयार कर रहे हैं साथ ही मिट्टी के थरमस भी तैयार कर रहे हैं जिसमें में पानी रखने से पानी शीतल मय रहता है ।सोनाउ राम कुम्हार ने बताया कि उनके पास राजनांदगांव दुर्ग रायपुर से मटका और थरमस की मांग आ रहा है लगभग 2500 मटका व 2000 थरमस तैयार कर रहे हैं।

हुनर का जवाब नहीं

डोंगरगांव के माटी शिल्पकार सोनाऊराम , सोनईबाई, लीला, गजेन्द्र, बलराम, देवेन्द्र आदि ने बताया कि वे कई पिढ़यों से मिट्टी के समान बनातें आ रहें है। पहले उनके परिजन मटकी, दिया, ज्योतिकलश और खपरैल बनाया करते थे। लोगों की रूचि में आए बदलाव के बाद वह अब युनिट चॉक के माध्यम से कलश, लोटा, कण्डिल, लैंप दिया, कछुआ दिया, शिवलिंग, अनानास, गुलदस्ता, कप-प्लेट, गिलास, कुकर, नारियल, पूजा दिया, अगरबत्ती स्टैण्ड, हाथी, घोड़ा, घंटी, गमला आदि सुंदर एवं मनमोहक मिट्टी के सामान लोगों को काफी पसंद आते है।

माटी शिल्पकारों ने बताया कि इन समानों से जीविकोपार्जन लायक आमदनी हो जाती है, किंतु प्रशासन प्रशिक्षण के साथ सुनिश्चित बाजार उपलब्ध कराने का प्रयास करतें तो आमदनी बढ़ेगी और साथ ही उनकी कला में निखार भी आएगा। इससे हमारे बच्चे जो कि होटल, दुकान में रोजी मजदूरी कर रहें है वे प्राचीन कला और हमारी पुस्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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