विश्व पर्यावरण दिवस विशेष…..पर्यावरण बचाने ऐसी भी हो रही पहल- बैलगाड़ी का पहिया बनाने न कांटने पड़े पेड़ इसलिए लोहे का पहिया तैयार करती है नंदिनी
महिला होकर खुद की एग्रो कंपनी चला रही,
किसानी हो मजबूत और पर्यावरण सुरक्षित यही है उद्देश्य
बालोद। आज पर्यावरण दिवस हम एक ऐसी महिला की बात करेंगे जिन्होंने यह साबित कर दिया है कि किसी कंपनी को खड़ी करना सिर्फ पुरुषों का काम नहीं है। बल्कि स्त्री भी ठान ले तो हर मंजिल मुकम्मल है। कंपनी ऐसी भी कि जिसने लोगों को पर्यावरण बचाने का अनूठा तरीका भी सिखाया। यहां बात हो रही है ग्राम मोहंदीपाट (गब्दी),थाना अर्जुंदा की रहने वाली नंदिनी धाक की। जो 1999 से खुद की धाक एंड धाक सिस्टर्स एग्रो इंडस्ट्रीज चला रही है। खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ की गौरव बढ़ाने वाली इस इंडस्ट्रीज की मालकिन नंदिनी को 1 जून 2010 को राज्यपाल ने भी सम्मानित किया है। नंदिनी अपने कंपनी में अपने कर्मचारियों के साथ बैलगाड़ी के चक्के बनाती है। जो लकड़ी के नहीं बल्कि लोहे से बनता है। इस तरह से कृषि साधनों के लोहे के पार्ट्स बनाकर नंदिनी वर्षो से पर्यावरण का संरक्षण भी कर रही है। ताकि उन साधनों को बनाने के लिए पेड़ों की कटाई ना हो। जब नंदिनी 25 साल की थी और जब नई-नई शादी होकर आई तभी उन्होंने इस कंपनी की बागडोर संभाली और खुद इसकी नींव रखकर अपने पति के साथ मिलकर इसे आगे बढ़ाती रही। आज वो खुद व उनकी दोनों बेटियां इस कंपनी को चला रही है।
इस तरह से मिला आइडिया और ठान बैठी कि लोगों की सोच बदल दूंगी
नंदिनी ने dainikbalodnews.com को बताया कि शादी के बाद जब वह अपने ससुराल आई तो खेत में कई बार किसानों को परेशान देखती थी। कई बार खेत से फसल ढोते समय बैल गाड़ी का चक्का (पहिया) टूट जाता था। जो लकड़ी से बने होते थे तो कई बार लकड़ी के पहिए बनाने के लिए पेड़ों की बलि होते देखती थी। यह सब देखकर नंदिनी ने उसी समय ठान लिया कि वह कुछ ऐसा करेगी कि लोगों की सोच ही बदल जाएगी और उन्होंने अपने पति के सहयोग से 1999 में ही कंपनी की नीव रख दी। देखते-देखते उनकी कंपनी ग्रोथ करने लगी और आज उनकी कंपनी व उनके काम की चर्चा सिर्फ बालोद जिले ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के कई जिलों में होती है।
कर्मचारी नहीं आते तो खुद ही करती है वेल्डिंग, गाड़ी भी चला लेती है
नंदिनी को अपने कर्म पर भरोसा है। वह कहती हैं कि कर्मचारी तो काम करते ही हैं। जिस दिन वे नहीं आते तो भी मेरी कंपनी का काम नहीं रुकता। बल्कि जिस दिन कर्मचारी ना हो तो खुद ही काम पर जुट जाती है तो कभी कर्मचारियों के साथ ही वह काम करती हैं। पुरुषों की तरह वह लोहे के पार्ट्स बनाने के लिए वेल्डिंग कर लेती है तो कभी सामान की सप्लाई के लिए पिकअप भी चला कर ले जाती है। यह काम कई बार महिलाओं के लिए असहज होता है लेकिन नंदिनी के लिए यह सब अब बिल्कुल आसान हो चुका है। तभी तो वह कहती है कि 1999 से हुई शुरुआत का ये सफर यूं ही आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने ठान लिया तो मंजिल मुकम्मल (हासिल) हो गई। नंदिनी की यह प्रेरक कहानी से उन महिलाओं को भी एक बेहतरीन प्रेरणा मिलती है जो यह सोचते हैं कि महिलाएं अपनी जिंदगी में कुछ नहीं कर सकती। उनकी जिंदगी तो बस चूल्हा चौका में ही निकल जाएगी लेकिन नंदिनी से प्रेरित होकर कई महिलाएं ऐसी भी हैं जो घर की चारदीवारी लांघी है और आज अलग-अलग क्षेत्र में अपनी पहचान भी बना रही है। ऐसी शख्सियत भीड़ में भी अपनी अलग पहचान बना लेते हैं।
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