क्वॉरेंटाइन के दिन पूरे करने के बाद अब प्रवासी मजदूरों को भी मनरेगा में जिला प्रशासन की पहल से मिलने लगा है रोजगार
बालोद। एक कहावत है कि गांव की मिट्टी एक दिन लोगों को खींच ही लाती है। चाहे हम शहर की चकाचौंध में कितनी ही दूर क्यों ना जा चुके हैं। इस कोरोना संकट ने कई लोगों को अपने गांव की मिट्टी ने आखिर खींच ही लाया है। उसी गांव की मिट्टी ने आज गांव के लोगों को रोजगार भी दिलाया है तो एक नया आसरा भी दिया है। जहां इस संकट के दौर में फिर से ग्रामीण अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर रहे हैं। रोजगार की तलाश में शहरों की चकाचौंध में पहुंचे ग्रामीण अब गांव लौट आए हैं कोरोना के चलते वे होम क्वॉरेंटाइन या फिर सरकारी भवनों में क्वॉरेंटाइन पर रहे हैं। जिनके दिन पूरे हो गए हैं, उन्हें रोजगार देने की पहल भी शुरू हो गई है कलेक्टर जन्मेजय महोबे के निर्देशन पर जिला पंचायत प्रशासन द्वारा मनरेगा के तहत प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिलाया जा रहा है। जहां पर अब उसी गांव की मिट्टी से मजदूरों को रोजगार मिल रहा है जिस मिट्टी को छोड़कर वे कुछ साल पहले चले गए थे। अब मजदूरों को इस बात का भी पछतावा है कि काश हम यही रहे होते तो हमें दर-दर भटकने की नौबत ना आती और हमारी खेती जो आज बंजर पड़ी है वह भी उपजाऊ नजर आती। जो हुआ सो हुआ अब नई शुरुआत करनी है यह सोचकर मजदूर अब अपनी आजीविका को नया रूप दे रहे हैं। मनरेगा के तहत ऐसे मजदूरों को रोजगार दिलाने की प्राथमिकता के साथ जिला प्रशासन ने सभी पंचायत प्रशासन को दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। जिसके मद्देनजर प्रवासी मजदूरों को रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है ।
ज्यादा मजदूरी की आस में चले जाते हैं शहर में
अक्सर प्रवासी मजदूर गांव में रोजगार नहीं मिलता इसलिए नहीं बल्कि ज्यादा मजदूरी की आस में गांव छोड़कर शहर की ओर रुख कर देते हैं। ग्राम मटिया, हल्दी के सरपंच दानीराम सिन्हा ने बताया कि गांव में बाहर से 32 मजदूर लौटे हुए थे जिनमें से 16 मजदूरों का 28 दिनों का क्वॉरेंटाइन पूरा हो चुका है उन्हें रोजगार गारंटी के तहत अलग से काम दिलाया गया है।
क्या बोले प्रवासी मजदूर
प्रवासी मजदूर नरेंद्र साहू ने कहा कि वे सभी मुंबई में ज्यादा मजदूरी की आस में काम करने चले गए थे। पलायन करके वहां गुजारा कर रहे थे लेकिन कोरोनावायरस ने उन्हें मजबूर कर दिया और भटकने से अच्छा वे अपने गांव लौट आए और अब यहां फिर से रोजगार पाकर खुश हैं। उनका कहना है कि अब यही रहना चाहते हैं। यही अच्छा सा रोजगार शुरू करके अपनी जिंदगी को फिर से एक नया आयाम देना चाहते हैं। ऐसे ही कई मजदूरों के अपने सपने हैं, जिन्हें अब पूरा करने के लिए मजदूर नए सिरे से जुट गए हैं।
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