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जेठ शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला या भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं

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दैनिक बालोद न्यूज।ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत राम बालक दास के द्वारा उनके विभिन्न ऑनलाइन ग्रुपों में प्रातः 10:00 बजे किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
आज के सत्संग परिचर्चा में नारायण चंद्राकर ने जिज्ञासा रखी की कल भीमसेनी एकादशी है , भीमसेनी एकादशी के महत्व को बताते हुए बाबा जी ने बताया कि जेष्ठ मास की शुक्ल की एकादशी के दिन यह व्रत किया जाता है और यह व्रत निर्जला और निराहार होकर ही किया जाता है,इसकी कथा आती है कि महाभारत काल में माता कुंती के साथ पांचो पांडव भी एकादशी व्रत रहा करते थे परंतु भीम जी को अत्यधिक भूख लगती थी क्योंकि उनके उदर मे वक्रोदय नामक अग्नि जला करती थी जिसके कारण उन्हें अत्यधिक भूख लगा करती थी और जब तक माता कुंती उनके लिए भोजन बनाकर स्वयं अपने हाथों से उनको नहीं खिलाती तो उनकी भूख शांत नहीं होती थी और एकादशी के दिन फल आदि से उनकी भूख शांत नहीं होती थी इसीलिए जब दुर्वासा ऋषि से कुंती की भेंट हुई तो दुर्वासा ऋषि से इस पर कुछ उपाय पूछा गया तब उन्होंने इस भीमसेनी एकादशी का महत्व विदित कराया यह एकादशी जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है जिसे निर्जला और निराहार करके पूरे साल भर की एकादशी का पुण्य कमाया जा सकता है और भीम जी ने इसी एकादशी को करके सभी एकादशी का फल प्राप्त किया इसीलिए आज भी इसे भीमसेनी एकादशी कहा जाता है
आगे सत्संग में गोपाल वर्मा ने जिज्ञासा रखी की
जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई।
जदपि मृषा छूटत कठिनई।।
तब ते जीव भयउ संसारी।
छूट न ग्रंथि न होइ सुखारी।।
” श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई।
छूट न अधिक अधिक अरुझाई।।”
इन पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि यहां पर चेतन परमात्मा को और जड़ हमारी बुद्धि मन और बृति को कहा गया है, जब हम मोह करते हैं प्रपंच करते हैं तो हमें बड़ा अच्छा लगता है लेकिन उसके कारण जब हमारे अपने हमसे दूर हो जाते हैं तो हमें विछोह का दुख होता है वैसे ही स्वादिष्ट भोजन हमें प्राप्त होता है तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब वह नहीं प्राप्त होता तो बहुत दुख भी होता है इस तरह संसार में रहते हुए हम अनेकानेक बंधनों में बंधते ही जाते हैं और दुख को प्राप्त करते हैं इसके लिए संसार में जैसे आए हैं वैसे ही जाना चाहिए अतः प्रयासरत रहे कि अपने अपने कर्मों का पालन नियत धर्म से करें तथा उसमें कभी बंधे नही।

    पाठक परदेसी ने जिज्ञासा रखी की 

सज्जन संग सज्जन मिले , होवे दो दो बातl
गधा से गधा मिले, खावे दो दो लातll
महात्मा कबीर के इस दोहे पर प्रकाश डालने की कृपा हो , कबीर जी के दोहे को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि हमें कभी भी सज्जन व्यक्तियों का अच्छे व्यक्तियों का अपने से बड़ों का माता-पिता का ही संग करना चाहिए क्योंकि हम सत्संग करेंगे सज्जन लोग के साथ में रहेंगे तो वही बुद्धि प्राप्त करेंगे, अर्थात जैसा संग रहेगा वैसा ही निर्मल मन होगा और यदि हम गधे से दोस्ती करेंगे तो वह हमेशा हमें लात ही मारेगा अर्थात बुरे व्यक्तियों की संगत हमें बुरा ही बनाएगा।

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