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दिल्ली के राजपथ पर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति झांकी को प्रर्दशित करने में बालोद जिले के कलाकारों का अहम योगदान रहा

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दैनिक बालोद न्यूज/दिल्ली के राजपथ पर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर आधारित निकली झांकी को न केवल बड़ी उत्सुकता के साथ देखा बल्कि इसकी उन्मुक्त कंठो से सराहना भी की। यह झांकी नेशनल मीडिया के साथ ही लोगों के दिलो-दिमाग में छा गई। गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर आधारित राज्य की झांकी देश भर के लोगों का आकर्षण का केन्द्र बनी वहीं यह सोशल मीडिया पर भी छायी रही। देश के विभिन्न हिस्सों से लगातार इसको सराहना मिल रही है।

छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति प्रस्तुत करने में बालोद जिले के कलाकारों का अहम भूमिका रहा

बालोद जिले के विभिन्न कलाकारों ने सम्मालित होकर अपना बहुमूल्य योगदान दिया जिसमें गुंडरदेही विकासखंड के रंगकटेरा से कुलदीप सार्वा,सरेखा से उग्रसेन देवदास, रनचिरई से रामकुमार पाटिल,तमोरा से डोरे लाल साहू, बालोद विकासखंड से प्रदीप ठाकुर,जयलक्ष्मी ठाकुर, गुरूर विकासखंड के ग्राम दरर्रा निवासी कु गेवरा सिन्हा, दुर्ग से संजीव राजपूत,पारस रजक,नेहा विश्वकर्मा, कुम्हारी से साधना, लोक रागिनी के संचालक रिखी क्षत्रीय छत्तीसगढ़ के लीडर के रूप में तेज बहादुर भुवाल के मार्गदर्शन में दिल्ली में झांकी का प्रर्दशन किया गया।

यह झांकी छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क विभाग के द्वारा तैयार की गई है

इस झांकी के निर्माण के लिए पिछले दो माह से तैयारी की जा रही थी। कई प्रस्तावों पर विचार करने के बार इस झांकी का निर्णय लिया गया है। छत्तीसगढ़ की झांकी में छत्तीसगढ़ के लोक संगीत का वाद्य वैभव को प्रदर्शित किया गया है। छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्यों को उनके सांस्कृतिक परिवेश के साथ बडे़ ही खूबसूरत ढंग से इसे दिखाया गया है। प्रस्तुत झांकी में छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बस्तर से लेकर उत्तर में स्थित सरगुजा तक विभिन्न अवसरों पर प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्य शामिल किए गए हैं। इनके माध्यम से छत्तीसगढ़ के स्थानीय तीज त्योहारों तथा रीति रिवाजों में निहित सांस्कृतिक मूल्यों को भी रेखांकित किया गया है।

झांकी के ठीक सामने वाले हिस्से में एक जनजाति महिला बैठी है जो बस्तर का प्रसिद्ध लोक वाद्य धनकुल बजा रही है। धनकुल वाद्य यंत्र, धनुष, सूप और मटके से बना होता है। जगार गीतों में इसे बजाया जाता है। झांकी के मध्य भाग में तुरही है। ये फूँक कर बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है, इसे मांगलिक कार्यों के दौरान बजाया जाता है। तुरही के ऊपर गौर नृत्य प्रस्तुत करते जनजाति हैं। झांकी के अंत में माँदर बजाता हुआ युवक है। झांकी में इनके अलावा अलगोजा, खंजेरी, नगाड़ा, टासक, बांस बाजा, नकदेवन, बाना, चिकारा, टुड़बुड़ी, डांहक, मिरदिन, मांडिया ढोल, गुजरी, सिंहबाजा या लोहाटी, टमरिया, घसिया ढोल, तम्बुरा को शामिल किया गया है।

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