केंवट गुहाराज निषाद पिछले जन्म में क्या था और माता सीता ने अपनी अंगुठी क्यो दी

दैनिक बालोद न्यूज।प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में किया गया जिसमें 10:00 बजे सभी भक्तगण जुड़कर इस सत्संग का लाभ प्राप्त किए एवं अपनी जिज्ञासाओं का भी समाधान प्राप्त किये।

  सत्संग परिचर्चा में डुबोवती यादव  ने जिज्ञासा रखी की, केवट पिछले जन्म में क्या था और क्यों सीता माँ ने उसे अपनी अंगूठी दी इस प्रश्न पर प्रकाश डालने की कृपा हो

    रामचरितमानस के इस अद्भुत प्रसंग को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि

केवट प्रसंग रामचरितमानस का सबसे मार्मिक एवं हृदय स्पी ्रसंग है, यह भक्ति की परम सीमा को उद्धृत करता है, कहते हैं कि छिरसागर में एक कछुआ था वह कोई सामान्य कछुआ  नहीं था वह बहुत ही पुण् आत्मा था परंतु जन्मों के संस्कार व प्रारब्ध के कारण उसे कई योनियों में जाना पड़ा उनके पुण्य ही थे जो उन्हें प्रतिदिन छिर सागर में प्रभु विष्णु के दर्शन कराते थे उनके मन में बार-बार प्रभु के चरण स्पर्श करने का विचार आता था परंतु कभी उन्हें शेषनाग रोक देते तो कभी माता लक्ष्मी तब एक दिन प्रभु उनके हृदय में विराजे और उन्हें आदेश दिया कि तुम मृत्यु लोक में जाओ और वहां जन्म लो तब मैं तुम्हें दर्शन दूंगा और तुम मेरे चरण स्पर्श करना  तब कच्छपराज ने धरती में  ऐसे  जाती का चयन किया ताकि केवट जाति का भी उद्धार हो क्योंकि उनकी प्रवृत्ति संत प्रवृत्ति थी  क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि श्री राम प्रभु जब धरती पर अवतार लेंगे तब नीयति के अनुसार वे नौका द्वारा ही गंगा जी को पार करेंगे तो उन्होंने इसी रूप में जन्म लेने का निश्चय किया, एक दिन गुहराज निषाद के साथ  शिकार पर गए, गुहराज पर सिँह ने प्रहार किया और केवट ने उन्हे उस सिंह से बचाया तब गुहराज ने प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा तब उन्होंने उस वर को थाती रखवा दिया और कहा जब समय आएगा मैं वर मांग लूंगा, समय बीता और श्री राम माता सीता और लक्ष्मण जी श्रृंगवेदपुर पधारे, वहां पर उनका बहुत आदर सत्कार हुआ और गुहराज जी ने उन्हें गंगा पार कराने के लिए बहुत ही सुंदर और भव्य नौका की तैयारी करवाई, यहां पर केवट राज बहुत ही व्यथित और चिंतित हो गए कि प्रभु के दर्शन तो मैं कर पा रहा हूं लेकिन उनके चरण स्पर्श नहीं कर पा रहा हूं और कैसे उन्हें अपने नौका पर बैठाकर गंगा पार कराऊंगा, तभी उनकी पत्नी ने उन्हें स्मरण कराया कि आपने वरदान थाती रखा था जाइए आप गुहराज जी से उस वर को आज मांग लीजिये , तब केवट गुहराज के समक्ष गया और उन्होंने गुहराज से कहा कि आज मैं आपसे कुछ मांगने आया हूं मैं चाहता हूं कि कल जब श्री राम गंगा पार करे तो वह केवल  मेरी ही नौका में गंगा पार करे बाकी सभी नौका डूबा दी जानी चाहिए, दूसरे दिन गुहराज श्री राम जी मैया सीता लक्ष्मण जी के साथ नदी किनारे पहुंचे बहुत ही अद्भुत दृश्य था जहां गुहराज आज राजा के रूप में नहीं बल्कि सेवक के रूप में श्री प्रभु को गंगा पार कराने के लिए पधारे थे वहां श्री राम जी के समक्ष केवट ने अपनी नौका उपस्थित की परंतु उन्होंने शर्त रखी कि जब वे अपने चरणों को उससे धूलाएंगे और उनके पितरो को मोक्ष दिलाने हेतु गंगा जी में तर्पण करेंगे तभी वे अपनी नौका से उन्हें गंगा तीर उतारेंगे, प्रभु ने ऐसा ही किया तब  केवट जी की मन की इच्छा पूर्ण हूँई और जब वे  नौका में बैठे तो श्री राम जी का हाथ अपने कंधे पर रख लिया कि आप गंगा जी को पार करे तो उसमें। ना गिरे और इस तरह से केवट भी भवसागर से पार हो गया प्रभु राम के हृदय में विचार आया कि मैं तो एक वनबासी हूं परंतु इस केवट को पुरस्कार के रुप में क्या दू तब माता सीता ने उनके हृदय की बात को जान लिया और अपने हाथ में पहनी मुद्रिका  को निकालकर प्रभु श्री राम को दिया जो कि श्री राम जी के पास थाती के रूप में रही यह वही मुद्रिका थी जिसे हनुमान जी ने लंका में ले जाकर माता सीता को दिया था।